Thursday 28 July 2016

राष्ट्रपति की कुर्सी से बड़े थे कलाम

राष्ट्रपति की कुर्सी से बड़े थे कलाम




राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने दिखाया कि रबर स्टैम्प कहलाने वाला राष्ट्रपति कैसे पूरे देश के मानस पर अमिट छाप छोड़ सकता है.
ऐसा इसलिए कि कलाम राष्ट्रपति के 'जॉब डिस्क्रिप्शन' काफ़ी बड़े थे. डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के बाद शायद ही कोई और राष्ट्रपति होगा जिसका देश के हर हलक़े में इतना सम्मान होगा, राधाकृष्णन का बहुत सम्मान था लेकिन इस तरह जन-जन में नहीं.
कलाम न तो वैज्ञानिक के खाँचे में फिट होते थे, न ही राजनेता के साँचे में, वो जो थे उसे ही विलक्षण कहा जाता है. कोई नहीं दिखता जिससे आप कलाम की तुलना कर सकें.
जो बात समझनी-समझानी मुश्किल हो, उसके लिए मुहावरा है--रॉकेट साइंस, उसी रॉकेट साइंस को कलाम लाखों स्कूली बच्चों तक ले गए. 'चाचा नेहरू' के बाद शायद ही कोई और नेशनल फ़िगर हो जो बच्चों में इतना पॉपुलर रहा हो.
1960 के दशक में मवेशियों के तबेले में लैब बनाने और साइकिल पर रॉकेट ढोने वाले शख़्स की ही विरासत है कि भारत नासा से सैकड़ों गुना सस्ते मंगल अभियान पर गर्व कर रहा है.


तमिलनाडु के तटवर्ती गाँव में मछुआरों को किराये पर नाव देने वाले ज़ैनउलआब्दीन का बेटा जो पूरी तरह देसी-सरकारी शिक्षण संस्थानों में पढ़ा, उसने पश्चिम का तकनीकी ज्ञान अपनाया मगर उसका जीवन-दर्शन पूरी तरह भारतीय रहा.
गीता पढ़ने, रूद्रवीणा बजाने और कविताएँ लिखने वाले शाकाहारी कलाम अपना ज़्यादा समय लाइब्रेरी में बिताते थे या फिर छात्रों के साथ. पारिवारिक झमेलों से दूर उनका जीवन पौराणिक काल के किसी संत-गुरू जैसा था लेकिन सुखोई उड़ाना और सियाचिन जाना उसमें एक अलग आयाम जोड़ता था.
कलाम को पूजने की हद तक चाहने वालों में मिसाइल और परमाणु बम की विनाशक ताक़त पर गर्वोन्मत होने वाले लोग बहुत हैं लेकिन कलाम को 'मिसाइलमैन' कहना उतना ही अटपटा है, जितना बालों की वजह से उन्हें 'रॉकस्टार' कहना.

कलाम को विक्रम साराभाई और सतीश धवन जैसे वैज्ञानिकों ने थुंबा के अंतरिक्ष रिसर्च सेंटर में काम करने के लिए चुना था, जहाँ कलाम ने अंतरिक्ष तक उपग्रह ले जाने वाले देसी रॉकेट विकसित करने वाली टीम की अगुआई की.
यही संस्थान 1971 में साराभाई के निधन के बाद, विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर बन गया जहाँ कलाम ने अपने वैज्ञानिक जीवन के 22 साल रॉकेट साइंस को भारत के लिए संभव बनाने में लगाए.
उन्होंने उस सेटेलाइट लॉन्च व्हीकेल यानी एसएलवी का पुर्ज़ा-पुर्ज़ा जाँचा-परखा जिसके कामयाब होने के बाद भारत एलीट स्पेस क्लब का मेंबर बन गया, ये सिलसिला यहाँ तक पहुँचा है कि उन्नत कहे जाने वाले देशों के सेटेलाइट भारतीय एसएलवी के ज़रिए अंतरिक्ष में भेजे जा रहे हैं.
रक्षा अनुसंधान में लगे संगठन डीआरडीओ में उनका कार्यकाल छोटा रहा है लेकिन वहाँ भी उन्होंने अहम काम किए. प्रधानमंत्री वाजपेयी के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार के तौर पर उन्होंने पोकरण-2 का नेतृत्व किया लेकिन उनका ज़ोर टेक्नॉलॉजी के ज़रिए ग़रीबों का जीवन बेहतर बनाने पर ही रहा, न कि मिसाइल पर.

कलाम पूरे देश में घूम-घूम कर कहीं रतनजोत की खेती करने, तो कहीं सेटेलाइट डेटा से मछुआरों की मदद करने की सलाह देते रहे.
2002 में जब राष्ट्रपति पद के लिए कलाम का नाम प्रस्तावित किया गया तो विपक्षी कांग्रेस ने उनके ख़िलाफ़ उम्मीदवार खड़ा न करने का फ़ैसला किया. सिर्फ़ वामपंथी दलों ने आज़ाद हिंद फ़ौज में शामिल रहीं कैप्टन लक्ष्मी सहगल को मैदान में उतारा और ये एकतरफ़ा चुनाव कलाम आसानी से जीत गए.
2002 में कलाम का नाम प्रस्तावित किया जाना एक संयोग नहीं था, तब गुजरात के भीषण दंगों की लपटें ठीक से बुझी भी नहीं थीं. ऐसे में कलाम को उम्मीदवार बनाने को कुछ लोगों ने मुसलमानों के लिए मरहम और कुछ ने भाजपा के सियासी दांव की तरह देखा.
संघ के लोग इसलिए खुश थे कि कलाम गीता पढ़ते हैं. कांग्रेस और समाजवादी पार्टी एक मुसलमान का विरोध नहीं कर सकती थीं. एक ऐसा 'आदर्श मुसलमान' जिसने देश को 'ताकतवर' बनाया और जिसकी देशभक्ति पर शुबहे की गुंजाइश नहीं थी.
कलाम के जाने के दुख में पूरा देश एक साथ है, हिंदू-मुसलमान सब दुखी हैं, कलाम ने सिखाया अच्छे रहकर बड़ा बनना और बड़े हो जाने पर अच्छा बने रहना. कलाम जिस तरह राष्ट्रपति पद से बड़े थे वैसे ही उनके जाने का दुख भी राष्ट्रीय शोक से ज्यादा गहरा है.
आशंकाएँ जताई गईं कि वे राजनीतिक तौर पर नासमझ साबित होंगे, दूसरे राष्ट्रपतियों के मुक़ाबले उनका कार्यकाल साफ़-सुथरा रहा. एक ही धब्बा है, राज्यपाल बूटा सिंह की सिफ़ारिश पर बिहार में 2005 में राष्ट्रपति शासन लगाने का, बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इस फ़ैसले को ग़लत करार दे दिया.
कलाम उन राष्ट्रपतियों में थे जिन्होंने पद की नई परिभाषा गढ़ी, अपने सर्वोच्च आसन का भरपूर आनंद लेकर काम करते हुए दिखते थे कलाम. दूसरे कार्यकाल की एक दबी-सी इच्छा शायद उनके मन में थी लेकिन जब उन्हें अंदाज़ा हुआ कि यूपीए सरकार की मंशा कुछ और है तो वे गरिमा के साथ किनारे हो गए.
पहले कार्यकाल के लिए समर्थन देने वाली कांग्रेस के साथ उनका एक मामूली टकराव हुआ था. तब उन्होंने अपने कार्यकाल के अंतिम हिस्से में 'लाभ के पद' संबंधी विधेयक पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया था. उसे पुनर्विचार के लिए लौटा दिया था.
साल 2002 में राष्ट्रपति बनते ही उन्होंने अपने थोड़े अटपटे एक्सेंट में 'विज़न 2020' पेश किया था, यानी अगले 18 साल में भारत एक उन्नत देश कैसे बनेगा इसका रोडमैप.
सरकारें बहुत सारे विज़न डाक्युमेंट पेश करती हैं और भूल जाती हैं. कलाम के ट्विटर प्रोफ़ाइल में लिखा था- भारत को 2020 तक एक आर्थिक शक्ति बनाने का सपना पूरा करने के लिए कार्यरत.
कलाम ने अपनी जीवनी विंग्स ऑफ़ फ़ायर में लिखा है कि दो चीज़ें उनमें जोश भरती हैं--विज्ञान और उसे सीखने की चाह रखने वालों का साथ.
उन्होंने जितने बड़े पैमाने पर देश के विज्ञान के छात्रों से मुलाक़ात, बात की है, कभी उनके कैम्पस में जाकर, कभी उन्हें राष्ट्रपति भवन बुलाकर, तो कभी स्काइप के ज़रिए वह गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज होने लायक है.
जीवन की अंतिम साँसें लेने से ऐन पहले वे छात्रों से ही बात कर रहे थे, वे ख़ुद भी शायद ऐसी ही मौत चाहते होंगे.

No comments:

Post a Comment

Translate

Comments System