फ्री गेम से कैसे पैसे बनाती हैं कंपनियां
पोकेमॉन गेम तो फ्री है. लेकिन जब इतने लोग उसे फ्री डाउनलोड करते हैं तो कंपनी पैसे कैसे बनाती है. करीब दो-तीन साल पहले एंग्री बर्ड्स या टेम्पल रन की सफलता को भी देखकर यही सवाल आपके मन में आया होगा.
कई कंपनियों ने अपने वीडियो गेम फ्री डाउनलोड करने के इस तरीके में महारत हासिल तो कर ली है. लेकिन उसके बाद पैसा बनाना आसान नहीं है. लेकिन पोकेमॉन गो ने ये कमाल कर दिखाया है, जो हर वीडियो गेम करना चाहेगा. अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में जो भी गेम रिलीज़ किए जाते हैं. उन्हें अब स्मार्टफोन पर पैसे खर्च करने वाले लोगों तक पहुंचने का बहुत बढ़िया तरीका ढूंढ लिया है.
जब भी पोकेमॉन गो, टेम्पल रन, सबवे सर्फर या एंग्री बर्ड्स लोग खेलते हैं तो कुछ मुश्किल पड़ाव को पार करने के दो तरीके मिलेंगे. एक तो उसे पार करने के लिए कुछ सिक्के या कोई और पावर खरीद लीजिए या फिर कई घंटे उस गेम में उसी लेवल पर उसे पार करने के तरीके ढूंढिए.
ऑनलाइन गेमिंग और ऐप की दुनिया में इसे फ्री-मियम मॉडल कहा जाता है यानि फ्री और प्रीमियम दोनों ऐसे गेम में शामिल हैं. इस तरीके से लोग जो भी गेम काफी पसंद किया जाता है उसे डाउनलोड तो कर लेते हैं और खेलते भी हैं. गेम को कितनी बार डाउनलोड किया गया है, उससे कंपनियों को अपने प्रोडक्ट की सफलता का अंदाज़ हो जाता है.
स्मार्टफ़ोन पर एक बार डाउनलोड हो गया और लोग उसे खेलने लगे तो धीरे-धीरे उसकी आदत सी लग जाती है और जब भी थोड़ा समय मिलता है लोग उसे खेलने लगते हैं.
लोगों से पैसे खर्च करवाने के लिए गेम बनाने वाले एक वर्चुअल करेंसी तैयार कर लेते हैं ताकि लोगों को ये नहीं लगे कि गेम के बीच में कुछ खरीदने के लिए पैसे खर्च कर रहे हैं. लेकिन वर्चुअल करेंसी होने के कारण ऐसा लगेगा नहीं कि आपने जेब से कुछ खरीद की है. लेकिन उस वर्चुअल करेंसी को खरीदने के लिए एक बार पैसे खर्च होते हैं.
उसके बाद भी अगर किसी फीचर को पाने के लिए कोई 100 रुपए खर्च कर रहा है तो आपके वर्चुअल करेंसी के सौ रुपए नहीं मिलेंगे. हो सकता है उसके लिए आपको 765 सिक्के मिलेंगे, जिनका इस्तेमाल करके आप कोई और शक्ति गेम के दौरान खरीद सकते हैं.
इस खरीदारी के लिए एेपल के ऐप स्टोर या गूगल प्ले स्टोर से जो खरीदारी करनी होती है, उसे बहुत आसान बना दिया गया है. इसलिए खरीदारी के समय कोई भी परेशानी नहीं होगी. लेकिन अगर खेलते समय पावर को गंवा दिया तो हो सकता है वो खरीदारी एक बार फिर से करनी पड़े.
गेम डिजाइन करते समय उसे ऐसा बनाया जाता है कि कोई एक बाधा को पार करने में आपको थोड़ी परेशानी हो. जैसे ही एक दो बार आपको परेशानी होगी, वहां पर पैसे खर्च कर के बाधा को पार करना बहुत आसान हो जाता है.
ऐसी खरीदारी करने वाले लोग अकसर पांच फ़ीसद से भी कम होते हैं.ऐसे ही लोग को गेमिंग कंपनियां ढूढती हैं जो पैसे खर्च करके भी गेमिंग चैंपियन बनना चाहते हैं. कभी-कभी विडियो गेम की कमाई का आधा पैसा करीब दो फ़ीसद खेलने वालों की जेब से आता है.
ये आदत युवाओं में ज़्यादा देखी जाती है और चूंकि खर्च करने वाली रकम बहुत बड़ी नहीं होती है, उन्हें भी ये पैसे खर्च करना आसान लगता है. युवाओं में कुछ कर दिखाने की जो बात होती है, गेम बनाने वाले कोशिश करते हैं कि युवा उनकी चुनौती स्वीकार करें.
फ्री गेम खेलने वालों से जो भी डेटा इकठ्ठा होता है, उससे गेम बनाने वाली कंपनियों को नए अपडेट बनाने में मदद मिलती है. कौन से फीचर आपको पसंद हैं, कहां पर सबसे ज़्यादा लोग फंस रहे हैं या कहां पर ज़्यादा लोग गेम को बंद कर देते हैं. इस डेटा से बीच बीच में आने वाले खरीदारी के मौके की कीमतों को कम या ज़्यादा करने में भी मदद मिलती है.
पोकेमॉन गो को सिर्फ चुने हुए देशों में लॉन्च किया गया. ये भी सोची समझी चाल होती है. इससे जो लोग दूसरे देशों में इसे डाउनलोड करना चाहते हैं उनपर नज़र रखके कंपनियों को समझ में आ जाता है कि उनके प्रोडक्ट की मांग कहां बहुत ज़्यादा है.
गेम डेवलपर ये भी जानते हैं कि आप किस देश में हैं या कौन सा स्मार्टफ़ोन इस्तेमाल कर रहे हैं और कीमतों को ऊपर या नीचे उस हिसाब से भी कर सकते हैं. एंग्री बर्ड्स ने कई प्रोडक्ट के साथ ब्रांडिंग करके भी कुछ पैसे कमाए और फिर बाद में उसी नाम से एक फिल्म भी रिलीज़ की.
अगली बार जब किसी गेम की आपको लत लग जाए तो बस एक बार अपने क्रेडिट कार्ड के बिल के बारे में सोच लीजिएगा
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